अभी वीडियो देखें पागलपंती – फिल्म समीक्षा | Pagalpanti Movie Review in Hindi | John Abraham | Anil Kapoor
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अनीस बज्मी पिछले 25 वर्षों से फिल्में बना रहे हैं और उनका एक ही उद्देश्य है कि उनकी फिल्म देख दर्शक हंसे और खुशी-खुशी घर जाएं। 6 से 80 साल तक के दर्शक वर्ग के लिए वे फिल्म रचते हैं और कॉमेडी के नाम पर अश्लीलता से दूर रहते हैं।
यही कारण है कि उनकी फिल्में टीवी पर खूब देखी जाती हैं। नो एंट्री, थैंक यू, वेलकम, वेलकम बेक, रेडी जैसी फिल्मों को टीवी पर खासी टीआरपी मिलती है और ये फिल्में लगातार दिखाई जाती हैं।
उनकी ताजा फिल्म ‘पागलपंती’ भी उसी शैली में बनाई गई है, जिसके लिए अनीस मशहूर है। जैसा की नाम से जाहिर है कि फिल्म में पागलपंती है और इसे गंभीरता से नहीं लेना है। दर्शक फिल्म का टिकट भी इसी उम्मीद से खरीदता है कि उसका फिल्म जम कर मनोरंजन करेगी।
लेकिन ‘पागलपंती’ एक औसत फिल्म है। इसमें वो अनीस नजर नहीं आता जिसके लिए वे फेमस हैं। पागलपंती के लिए अनीस कुछ नया नहीं सोच सके हैं और उन्होंने अपने आपको दोहरा दिया है।
अनीस ने कहानी को मजबूत करने के बजाय दृश्यों पर ज्यादा ध्यान दिया है, भले ही ये सीन कहानी में फिट हो रहे हो या नहीं। यदि सीन मजबूत होते हैं तो दर्शक कहानी पर ध्यान नहीं देते हैं। पागलपंती में कुछ सीन अच्छे बन पड़े हैं, लेकिन इनकी संख्या कम है।
अनीस की फिल्मों के किरदार महंगे कपड़े पहनते हैं, महल जैसे घरों में रहते हैं, महंगी कारों में घूमते हैं और दिमाग से पैदल होते हैं। फिल्म की लोकेशन भी शानदार होती है। पागलपंती में भी यही सब कुछ है।
कहानी है राजकिशोर (जॉन अब्राहम) की जो बहुत ही ‘अनलकी’ है। एक पंडित का कहना है कि शनि इसके पीछे नहीं बल्कि इसकी गोद में बैठा है। जहां जाता है वहां काम बिगड़ जाता है। ऐसा ही एक किरदार अक्षय कुमार ने ‘हाउसफुल’ सीरिज में निभाया था।
राजकिशोर और उसके दो दोस्त जंकी (अरशद वारसी) और चंदू (पुलकित सम्राट), गैंगस्टर्स वाईफाई भाई (अनिल कपूर) और राजा साहब (सौरभ शुक्ला) का करोड़ों का नुकसान कर देते हैं और बदले में उनके नौकर बन जाते हैं। नौकर बन कर भी उनका नुकसान पहुंचाना जारी रहता है और इस कारण दोनों गैंगस्टर्स मुसीबत में फंस जाते हैं।
फिल्म में कलाकारों की भीड़ इकट्ठा की गई है। लोकेशन के रूप में इंग्लैंड है। कारें उड़ाई गई है। कॉमेडी की गई है। शेर को भी दिखाया है, लेकिन फिल्म अपने नाम के अनुरूप फनी नहीं बन पाई है।
फिल्म में दो बड़ी खामियां हैं। इंटरवल के बाद फिल्म आकर एक जगह ठहर जाती है और कहानी गोल-गोल घूमने लगती है। दूसरी अखरने वाली बात है फिल्म की लंबाई। 165 मिनट की यह फिल्म आसानी से 30 मिनट छोटी की जा सकती है। कई गैर जरूरी दृश्य और गाने महज फिल्म की लंबाई ही बढ़ाते हैं।
“पागलपंती – फिल्म समीक्षा | Pagalpanti Movie Review in Hindi | John Abraham | Anil Kapoor“, स्रोत से लिया गया: https://www.youtube.com/watch?v=X_wBoZ-wSV4
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अनीस बज्मी पिछले 25 वर्षों से फिल्में बना रहे हैं और उनका एक ही उद्देश्य है कि उनकी फिल्म देख दर्शक हंसे और खुशी-खुशी घर जाएं। 6 से 80 साल तक के दर्शक वर्ग के लिए वे फिल्म रचते हैं और कॉमेडी के नाम पर अश्लीलता से दूर रहते हैं।
यही कारण है कि उनकी फिल्में टीवी पर खूब देखी जाती हैं। नो एंट्री, थैंक यू, वेलकम, वेलकम बेक, रेडी जैसी फिल्मों को टीवी पर खासी टीआरपी मिलती है और ये फिल्में लगातार दिखाई जाती हैं।
उनकी ताजा फिल्म ‘पागलपंती’ भी उसी शैली में बनाई गई है, जिसके लिए अनीस मशहूर है। जैसा की नाम से जाहिर है कि फिल्म में पागलपंती है और इसे गंभीरता से नहीं लेना है। दर्शक फिल्म का टिकट भी इसी उम्मीद से खरीदता है कि उसका फिल्म जम कर मनोरंजन करेगी।
लेकिन ‘पागलपंती’ एक औसत फिल्म है। इसमें वो अनीस नजर नहीं आता जिसके लिए वे फेमस हैं। पागलपंती के लिए अनीस कुछ नया नहीं सोच सके हैं और उन्होंने अपने आपको दोहरा दिया है।
अनीस ने कहानी को मजबूत करने के बजाय दृश्यों पर ज्यादा ध्यान दिया है, भले ही ये सीन कहानी में फिट हो रहे हो या नहीं। यदि सीन मजबूत होते हैं तो दर्शक कहानी पर ध्यान नहीं देते हैं। पागलपंती में कुछ सीन अच्छे बन पड़े हैं, लेकिन इनकी संख्या कम है।
अनीस की फिल्मों के किरदार महंगे कपड़े पहनते हैं, महल जैसे घरों में रहते हैं, महंगी कारों में घूमते हैं और दिमाग से पैदल होते हैं। फिल्म की लोकेशन भी शानदार होती है। पागलपंती में भी यही सब कुछ है।
कहानी है राजकिशोर (जॉन अब्राहम) की जो बहुत ही ‘अनलकी’ है। एक पंडित का कहना है कि शनि इसके पीछे नहीं बल्कि इसकी गोद में बैठा है। जहां जाता है वहां काम बिगड़ जाता है। ऐसा ही एक किरदार अक्षय कुमार ने ‘हाउसफुल’ सीरिज में निभाया था।
राजकिशोर और उसके दो दोस्त जंकी (अरशद वारसी) और चंदू (पुलकित सम्राट), गैंगस्टर्स वाईफाई भाई (अनिल कपूर) और राजा साहब (सौरभ शुक्ला) का करोड़ों का नुकसान कर देते हैं और बदले में उनके नौकर बन जाते हैं। नौकर बन कर भी उनका नुकसान पहुंचाना जारी रहता है और इस कारण दोनों गैंगस्टर्स मुसीबत में फंस जाते हैं।
फिल्म में कलाकारों की भीड़ इकट्ठा की गई है। लोकेशन के रूप में इंग्लैंड है। कारें उड़ाई गई है। कॉमेडी की गई है। शेर को भी दिखाया है, लेकिन फिल्म अपने नाम के अनुरूप फनी नहीं बन पाई है।
फिल्म में दो बड़ी खामियां हैं। इंटरवल के बाद फिल्म आकर एक जगह ठहर जाती है और कहानी गोल-गोल घूमने लगती है। दूसरी अखरने वाली बात है फिल्म की लंबाई। 165 मिनट की यह फिल्म आसानी से 30 मिनट छोटी की जा सकती है। कई गैर जरूरी दृश्य और गाने महज फिल्म की लंबाई ही बढ़ाते हैं।
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