अभी वीडियो देखें Satyamev Jayate 2 Movie Review in Hindi | सत्यमेव जयते 2 फिल्म समीक्षा | John Abraham
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कई बार बीमारी समझ में नहीं आती है तो खूब सारी दवाइयां दे दी जाती हैं कि कोई न कोई सी तो लग जाएगी और मरीज ठीक हो जाएगा। निर्देशक मिलाप ज़वेरी ने यही काम ‘सत्यमेव जयते 2’ में किया है। किसानों का दर्द, भ्रष्टाचार की मार, बच्चों से भीख मंगवाने वाली गैंग, कोमा में मां, भाई-भाई का प्यार, हल चलाता पिता, भगवान-अल्लाह-वाहेगुरु, करवा चौथ का व्रत जैसे तमाम देखे-दिखाए और घिस कर तार-तार हो चुके फॉर्मूलों को जोड़-जाड़ कर उन्होंने फिल्म तैयार कर दी है। मिलन ने सत्तर-अस्सी और नब्बे की दशक की फिल्मों से आइडिए लिए हैं। दीवार, शहंशाह, देशप्रेमी, गब्बर इज बैक, करण अर्जुन, अमर अकबर एंथनी जैसी फिल्में ‘सत्यमेव जयते 2’ देखते समय याद आती हैं। इन फिल्मों की हजारवीं कॉपी जैसी लगती है ‘सत्यमेव जयते 2’।
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असल में मिलन ज़वेरी अलग-अलग अंदाज में कई सीन फिल्मा लिए हैं और उन्हें किसी तरह जोड़ कर कहानी के रूप पिरोकर फिल्म बना डाली है। ‘मास एंटरटेनर’ यह शब्द बॉलीवुड में बहुत प्रचलित है। ‘मास एंटरनेटनर’ की आड़ में फिल्म की तमाम बुराइयां छिप जाती है और कहा जाता है कि सिंगल स्क्रीन में फिल्म देखने वाली जनता (मास) यह सब कुछ पसंद करती है। लेकिन मिलन में वो काबिलियत नहीं है कि वे मास एंटरटेनर बना सके। उधार की रोशनी में ज्यादा देर नहीं चमक सकते।
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Satyamev Jayate 2 Movie Review in Hindi | सत्यमेव जयते 2 फिल्म समीक्षा | John Abraham लेख में निम्नलिखित सामग्री है: कई बार बीमारी समझ में नहीं आती है तो खूब सारी दवाइयां दे दी जाती हैं कि कोई न कोई सी तो लग जाएगी और मरीज ठीक हो जाएगा। निर्देशक मिलाप ज़वेरी ने यही काम ‘सत्यमेव जयते 2’ में किया है। किसानों का दर्द, भ्रष्टाचार की मार, बच्चों से भीख मंगवाने वाली गैंग, कोमा में मां, भाई-भाई का प्यार, हल चलाता पिता, भगवान-अल्लाह-वाहेगुरु, करवा चौथ का व्रत जैसे तमाम देखे-दिखाए और घिस कर तार-तार हो चुके फॉर्मूलों को जोड़-जाड़ कर उन्होंने फिल्म तैयार कर दी है। मिलन ने सत्तर-अस्सी और नब्बे की दशक की फिल्मों से आइडिए लिए हैं। दीवार, शहंशाह, देशप्रेमी, गब्बर इज बैक, करण अर्जुन, अमर अकबर एंथनी जैसी फिल्में ‘सत्यमेव जयते 2’ देखते समय याद आती हैं। इन फिल्मों की हजारवीं कॉपी जैसी लगती है ‘सत्यमेव जयते 2’।
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असल में मिलन ज़वेरी अलग-अलग अंदाज में कई सीन फिल्मा लिए हैं और उन्हें किसी तरह जोड़ कर कहानी के रूप पिरोकर फिल्म बना डाली है। ‘मास एंटरटेनर’ यह शब्द बॉलीवुड में बहुत प्रचलित है। ‘मास एंटरनेटनर’ की आड़ में फिल्म की तमाम बुराइयां छिप जाती है और कहा जाता है कि सिंगल स्क्रीन में फिल्म देखने वाली जनता (मास) यह सब कुछ पसंद करती है। लेकिन मिलन में वो काबिलियत नहीं है कि वे मास एंटरटेनर बना सके। उधार की रोशनी में ज्यादा देर नहीं चमक सकते।
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