लव आज कल : फिल्म समीक्षा | Love Aaj Kal: Movie Review | Karthik Aryan | Sara Ali Khan

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इम्तियाज़ अली को हमेशा रोमांटिक फिल्में बनाना पसंद रहा है और लव आज कल लेकर फिर वे हाजिर हैं। इसी नाम की उन्होंने पहले भी फिल्म बनाई थी जिसमें समय के दो अलग-अलग दौर में होने वाले प्यार और तरीके को लेकर उन्होंने तुलना की थी। इसी तरह की दो कहनियां और उन्होंने 2020 की लव आज कल में दिखाई है। एक कहानी 1990 में चलती है और दूसरी 2020 में। निश्चित रूप से प्यार और इज़हार के तरीके में काफी बदलाव आया है, लेकिन प्यार की भावना वहीं है।

ज़ोई (सारा अली खान) का वीर (कार्तिक आर्यन) के प्रति आकर्षण है। दोनों अक्सर रघु (रणदीप हुड्डा) के कैफे पर मिलते हैं। ज़ोई को रघु अपनी 30 साल पुरानी प्रेम कहानी सुनाता है। 30 साल पुराने रघु के किरदार में फिर कार्तिक आर्यन हैं। यह रघु, लीना (आरुषि शर्मा) को चाहता था। रघु-लीना की लव स्टोरी से ज़ोई अपनी लव स्टोरी के तार जोड़ती है। कई बार वह कन्फ्यूज होती है। कई बार उसके रास्ते बंद होते है तो कई बार खुलते हुए नजर आते हैं।

इस कहानी के जरिये इम्तियाज़ अली ने कई बातें कहीं हैं जो परत-दर-परत सामने आती रहती हैं। ज़ोई की उम्र के लड़के-लड़कियां अक्सर कन्फ्यूज हो जाते हैं कि वे करियर बनाएं या प्यार-मोहब्बत की दुनिया में खो जाए। इसलिए ज्यादातर कमिटमेंट्स से बचते हैं। सेक्स महज उनके लिए एक शारीरिक क्रिया होती है और वे बिना कमिटमेंट वाला रिश्ता चाहते हैं। लेकिन प्यार तो प्यार है, न चाहते हुए भी हो जाता है।

ज़ोई आज की लड़की है और उसने 55 साल की उम्र तक के गोल्स सेट कर रखे हैं। वह 25 साल तक प्यार के ‘चक्कर’ में नहीं पड़ना चाहती है और पहले सैटल होना चाहती है।

उसे अपनी मां की बातें भी कन्फ्यूजिंग लगती है। मां चाहती है कि पहले वह पैसे कमाने के काबिल बने, फिर शादी करे। जब वह करियर पर ध्यान देती है तो एक अमीर परिवार से उसके लिए रिश्ता आता है। मां चाहती है वह सब कुछ छोड़ कर शादी कर ले। मां उसे प्रैक्टिकल ज्ञान दे कर पैसों के महत्व को समझाती है।

ज़ोई समझ नहीं पाती है कि वह करियर बनाए या उस अमीर लड़के से शादी कर सैटल हो जाए जिसे वह कभी मिली भी नहीं है या फिर वीर के साथ जिंदगी बिताने का फैसला कर ले जिसके साथ उसे अपना आदर्श रिश्ता नजर आता है।

वह प्रोफेशनल लाइफ और पर्सनल लाइफ में संतुलन बैठाने में खुद को सक्षम नहीं मानती है और उसे समझ नहीं आता कि आखिर वह क्या करे। जिस प्यार और कमिटमेंट से वह घबराती है वही उसे हो गया है। दूसरी ओर वीर के अपने कुछ फंडे हैं। वह किसी भी रिश्ते में समझौता नहीं चाहता है।

इम्तियाज ने फिल्म को लिखा और निर्देशित किया है। इम्तियाज की फिल्मों में अक्सर किरदार कन्फ्यूज नजर आते हैं और यह सिलसिला उन्होंने इस फिल्म में भी जारी रखा है, लेकिन यहां पर सिचुएशन के आधार पर कन्यफ्यूजन पैदा होते हैं।

इम्तियाज ने कई बातों को समेटने की कोशिश की है और दर्शाया है कि दुनिया इतनी आसान नहीं है। आपको ‘प्यार’ चाहिए तो ‘पैसा’ भी चाहिए। संतुलन बनाते आना चाहिए। पैसे के खातिर समझौता करना भी दिल पर पत्थर रखने के समान है।

किरदारों की आपस की बातों के जरिये मामला उलझता और सुलझता है। और इसी तरह फिल्म आगे बढ़ती है। एक मोड़ पर जाकर फिल्म को खत्म करना थी और इम्तियाज ने भी किसी तरह बात को खत्म किया है। अब दर्शकों पर निर्भर करता है कि वे अपनी पर्सनल लाइफ में किसे प्राथमिकता देते हैं।

फिल्म में कई सीन बढ़िया हैं और बहुत कुछ कह जाते हैं। किरदारों की उलझन उभर कर सामने आती है। क्या सही है और क्या गलत इसको लेकर आपके मन में भी सवाल-जवाब शुरू हो जाते हैं।

इम्तियाज ने अपनी बात कहने का तरीका कठिन चुना है। दो कहानियां उन्होंने समानांतर चलाई है। फिर रणदीप हुड्डा के अतीत के किरदार में उन्होंने कार्तिक आर्यन को रखा है इससे फिल्म समझने में कुछ लोगों को कठिनाई भी हो सकती है।

रघु और लीना की लव स्टोरी शुरुआत में बढ़िया चलती है, लेकिन बाद में हाईवे से उतर कर उबड़-खाबड़ रास्ते पर चलने लगती है। लीना को अपने से भी ज्यादा चाहने वाला रघु गलत राह पर चलने लगता है और यहां पर लेखन कमजोर हो जाता है। बाद में रघु-लीना की कहानी झुंझलाहट पैदा करती है।

हालांकि रघु-लीना की प्रेम कहानी से ही ज़ोई को अपनी प्रेम कहानी का जवाब मिलता है और यह बात फिल्म का मास्टर स्ट्रोक होनी थी। 1990 और 2020 का अंतर बहुत ज्यादा नहीं है, यह अंतर और ज्यादा होता तो बेहतर रहता।

इस तरह के प्रस्तुतिकरण में फिल्म की एडिटिंग जोरदार होना चाहिए और यह काम आरती बजाज ने अच्छी तरह से किया है। इस फिल्म को एडिट करना उनके लिए कठिन चुनौती रही होगी।

कार्तिक आर्यन का अभिनय औसत से बेहतर है। 1990 वाले किरदार में उन्होंने थोड़ी ओवर एक्टिंग की है। 90 वाला दौर जरूरत से ही ज्यादा पुराना दिखाया गया है। 2020 वाले किरदार में वे बेहतर लगे हैं।

सारा अली खान आत्मविश्वास से भरपूर नजर आईं। उन्होंने खुल कर अभिनय किया है और फिल्म दर फिल्म वे निखरती जा रही हैं। रणदीप हुड्डा ने फिर दिखाया कि वे कितने बेहतरीन अभिनेता हैं। उन्हें ज्यादा से ज्यादा फिल्में करना चाहिए। आरुषि शर्मा की यह पहली फिल्म है और वे अपना असर छोड़ती हैं।

इम्तियाज़ की फिल्मों का संगीत बेहतरीन होता है, लेकिन ‘लव आज कल’ के संगीत में वो बात नहीं है। हिट गानों की कमी महसूस होती है और प्रेम कहानियों में हिट संगीत होना आवश्यक है। फिल्म की सिनेमाटोग्राफी शानदार है। तकनीकी रूप से भी फिल्म मजबूत है।

लव आज कल में इम्तियाज ने प्रेम को आज के दौर के नजरिये से दिखाने की कोशिश की है।

लव आज कल : फिल्म समीक्षा | Love Aaj Kal: Movie Review | Karthik Aryan | Sara Ali Khan“, स्रोत से लिया गया: https://www.youtube.com/watch?v=JPveFejhNFs

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इम्तियाज़ अली को हमेशा रोमांटिक फिल्में बनाना पसंद रहा है और लव आज कल लेकर फिर वे हाजिर हैं। इसी नाम की उन्होंने पहले भी फिल्म बनाई थी जिसमें समय के दो अलग-अलग दौर में होने वाले प्यार और तरीके को लेकर उन्होंने तुलना की थी। इसी तरह की दो कहनियां और उन्होंने 2020 की लव आज कल में दिखाई है। एक कहानी 1990 में चलती है और दूसरी 2020 में। निश्चित रूप से प्यार और इज़हार के तरीके में काफी बदलाव आया है, लेकिन प्यार की भावना वहीं है।

ज़ोई (सारा अली खान) का वीर (कार्तिक आर्यन) के प्रति आकर्षण है। दोनों अक्सर रघु (रणदीप हुड्डा) के कैफे पर मिलते हैं। ज़ोई को रघु अपनी 30 साल पुरानी प्रेम कहानी सुनाता है। 30 साल पुराने रघु के किरदार में फिर कार्तिक आर्यन हैं। यह रघु, लीना (आरुषि शर्मा) को चाहता था। रघु-लीना की लव स्टोरी से ज़ोई अपनी लव स्टोरी के तार जोड़ती है। कई बार वह कन्फ्यूज होती है। कई बार उसके रास्ते बंद होते है तो कई बार खुलते हुए नजर आते हैं।

इस कहानी के जरिये इम्तियाज़ अली ने कई बातें कहीं हैं जो परत-दर-परत सामने आती रहती हैं। ज़ोई की उम्र के लड़के-लड़कियां अक्सर कन्फ्यूज हो जाते हैं कि वे करियर बनाएं या प्यार-मोहब्बत की दुनिया में खो जाए। इसलिए ज्यादातर कमिटमेंट्स से बचते हैं। सेक्स महज उनके लिए एक शारीरिक क्रिया होती है और वे बिना कमिटमेंट वाला रिश्ता चाहते हैं। लेकिन प्यार तो प्यार है, न चाहते हुए भी हो जाता है।

ज़ोई आज की लड़की है और उसने 55 साल की उम्र तक के गोल्स सेट कर रखे हैं। वह 25 साल तक प्यार के ‘चक्कर’ में नहीं पड़ना चाहती है और पहले सैटल होना चाहती है।

उसे अपनी मां की बातें भी कन्फ्यूजिंग लगती है। मां चाहती है कि पहले वह पैसे कमाने के काबिल बने, फिर शादी करे। जब वह करियर पर ध्यान देती है तो एक अमीर परिवार से उसके लिए रिश्ता आता है। मां चाहती है वह सब कुछ छोड़ कर शादी कर ले। मां उसे प्रैक्टिकल ज्ञान दे कर पैसों के महत्व को समझाती है।

ज़ोई समझ नहीं पाती है कि वह करियर बनाए या उस अमीर लड़के से शादी कर सैटल हो जाए जिसे वह कभी मिली भी नहीं है या फिर वीर के साथ जिंदगी बिताने का फैसला कर ले जिसके साथ उसे अपना आदर्श रिश्ता नजर आता है।

वह प्रोफेशनल लाइफ और पर्सनल लाइफ में संतुलन बैठाने में खुद को सक्षम नहीं मानती है और उसे समझ नहीं आता कि आखिर वह क्या करे। जिस प्यार और कमिटमेंट से वह घबराती है वही उसे हो गया है। दूसरी ओर वीर के अपने कुछ फंडे हैं। वह किसी भी रिश्ते में समझौता नहीं चाहता है।

इम्तियाज ने फिल्म को लिखा और निर्देशित किया है। इम्तियाज की फिल्मों में अक्सर किरदार कन्फ्यूज नजर आते हैं और यह सिलसिला उन्होंने इस फिल्म में भी जारी रखा है, लेकिन यहां पर सिचुएशन के आधार पर कन्यफ्यूजन पैदा होते हैं।

इम्तियाज ने कई बातों को समेटने की कोशिश की है और दर्शाया है कि दुनिया इतनी आसान नहीं है। आपको ‘प्यार’ चाहिए तो ‘पैसा’ भी चाहिए। संतुलन बनाते आना चाहिए। पैसे के खातिर समझौता करना भी दिल पर पत्थर रखने के समान है।

किरदारों की आपस की बातों के जरिये मामला उलझता और सुलझता है। और इसी तरह फिल्म आगे बढ़ती है। एक मोड़ पर जाकर फिल्म को खत्म करना थी और इम्तियाज ने भी किसी तरह बात को खत्म किया है। अब दर्शकों पर निर्भर करता है कि वे अपनी पर्सनल लाइफ में किसे प्राथमिकता देते हैं।

फिल्म में कई सीन बढ़िया हैं और बहुत कुछ कह जाते हैं। किरदारों की उलझन उभर कर सामने आती है। क्या सही है और क्या गलत इसको लेकर आपके मन में भी सवाल-जवाब शुरू हो जाते हैं।

इम्तियाज ने अपनी बात कहने का तरीका कठिन चुना है। दो कहानियां उन्होंने समानांतर चलाई है। फिर रणदीप हुड्डा के अतीत के किरदार में उन्होंने कार्तिक आर्यन को रखा है इससे फिल्म समझने में कुछ लोगों को कठिनाई भी हो सकती है।

रघु और लीना की लव स्टोरी शुरुआत में बढ़िया चलती है, लेकिन बाद में हाईवे से उतर कर उबड़-खाबड़ रास्ते पर चलने लगती है। लीना को अपने से भी ज्यादा चाहने वाला रघु गलत राह पर चलने लगता है और यहां पर लेखन कमजोर हो जाता है। बाद में रघु-लीना की कहानी झुंझलाहट पैदा करती है।

हालांकि रघु-लीना की प्रेम कहानी से ही ज़ोई को अपनी प्रेम कहानी का जवाब मिलता है और यह बात फिल्म का मास्टर स्ट्रोक होनी थी। 1990 और 2020 का अंतर बहुत ज्यादा नहीं है, यह अंतर और ज्यादा होता तो बेहतर रहता।

इस तरह के प्रस्तुतिकरण में फिल्म की एडिटिंग जोरदार होना चाहिए और यह काम आरती बजाज ने अच्छी तरह से किया है। इस फिल्म को एडिट करना उनके लिए कठिन चुनौती रही होगी।

कार्तिक आर्यन का अभिनय औसत से बेहतर है। 1990 वाले किरदार में उन्होंने थोड़ी ओवर एक्टिंग की है। 90 वाला दौर जरूरत से ही ज्यादा पुराना दिखाया गया है। 2020 वाले किरदार में वे बेहतर लगे हैं।

सारा अली खान आत्मविश्वास से भरपूर नजर आईं। उन्होंने खुल कर अभिनय किया है और फिल्म दर फिल्म वे निखरती जा रही हैं। रणदीप हुड्डा ने फिर दिखाया कि वे कितने बेहतरीन अभिनेता हैं। उन्हें ज्यादा से ज्यादा फिल्में करना चाहिए। आरुषि शर्मा की यह पहली फिल्म है और वे अपना असर छोड़ती हैं।

इम्तियाज़ की फिल्मों का संगीत बेहतरीन होता है, लेकिन ‘लव आज कल’ के संगीत में वो बात नहीं है। हिट गानों की कमी महसूस होती है और प्रेम कहानियों में हिट संगीत होना आवश्यक है। फिल्म की सिनेमाटोग्राफी शानदार है। तकनीकी रूप से भी फिल्म मजबूत है।

लव आज कल में इम्तियाज ने प्रेम को आज के दौर के नजरिये से दिखाने की कोशिश की है।

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