पानीपत : फिल्म समीक्षा | Panipat Movie Review in Hindi | Arjun Kapoor | Kriti Sanon

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258 वर्ष पहले पानीपत की तीसरी लड़ाई सदाशिव राव भाऊ और अहमद शाह अब्दाली के बीच लड़ी गई थी। दोनों के इसके पीछे मकसद थे।

मराठों के बढ़ते साम्राज्य से परेशान होकर नजीब उद्दौला अफगानिस्तान के बादशाह अब्दाली से मदद मांगता है कि यदि वह मराठों को पराजित कर दे तो

पूरे हिन्दुस्तान पर उसका कब्जा हो सकता है। जब अब्दाली उसकी बात मान कर भारत आ पहुंचता है तो उसे रोकने के लिए अन्य राजाओं के साथ

सदाशिव युद्ध करने का फैसला करता है।

इस घटना को लेकर आशुतोष गोवारीकर ने ‘पानीपत’ नामक फिल्म बनाई है। फिल्म में दिखाया गया है कि उस समय क्या परिस्थितियां थीं। क्यों

अब्दाली को रोका जाना जरूरी था। क्यों सदाशिव के लिए लड़ना जरूरी था। किस तरह से इस युद्ध के हालात पैदा हुए। किस तरह से सदाशिव ने युद्ध की तैयारियां की। रणनीति बनाई।

चंद्रशेखर धवलीकर, रंजीत बहादुर, आदित्य रावल और आशुतोष गोवारीकर ने मिलकर यह कहानी लिखी है। नाटकीय प्रभाव पैदा करने के लिए कल्पना का
भी इस्तेमाल किया।

भारतीय इतिहास का यह एक ऐसा युद्ध है जिसके बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते हैं इसलिए इतिहास के पन्नों से निकाल कर इसे फिल्म का रूप दिया गया है।

फिल्म में पूरी कहानी पार्वती बाई (कृति सेनन) के जरिये बताई गई है जो कि सदाशिव राव भाऊ की पत्नी है। शुरुआत में सदाशिव की बहादुरी को लेकर सीन गढ़े गए हैं ताकि दर्शकों के मन में एक वीर की छवि अंकित हो।

इसके बाद अब्दाली से युद्ध के पहले की तैयारियों पर आधी से ज्यादा फिल्म खर्च की गई है। इस दौरान कई किरदार सामने आते हैं। कई घटनाएं घटित होती हैं। यह हिस्सा लंबा जरूर है, लेकिन रोचक भी है। इसके बाद क्लाइमैक्स में युद्ध दिखाया गया है। यह युद्ध ऐसा नहीं दिखाया गया है कि दर्शक वाह कहें, लेकिन बुरा भी नहीं है।
फिल्म की लंबाई थोड़ा परेशान करती है। आशुतोष गोवारीकर लंबी फिल्म बनाने के लिए जाने जाते हैं। यहां पर भी उन्होंने कुछ दृश्यों को बेवजह लंबा खींचा है जिससे कई दृश्यों का प्रभाव कम हो गया है।
फिल्म के मुख्य कलाकारों का अभिनय औसत है जिससे कई दृश्यों में वो बात नहीं बन पाई जो अच्छे कलाकारों के होने से बनती है। भव्यता जरूर नजर आती है, लेकिन सेट का नकलीपन भी जाहिर होता रहता है।

पानीपत : फिल्म समीक्षा | Panipat Movie Review in Hindi | Arjun Kapoor | Kriti Sanon“, स्रोत से लिया गया: https://www.youtube.com/watch?v=drJgM-5zETI

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258 वर्ष पहले पानीपत की तीसरी लड़ाई सदाशिव राव भाऊ और अहमद शाह अब्दाली के बीच लड़ी गई थी। दोनों के इसके पीछे मकसद थे।

मराठों के बढ़ते साम्राज्य से परेशान होकर नजीब उद्दौला अफगानिस्तान के बादशाह अब्दाली से मदद मांगता है कि यदि वह मराठों को पराजित कर दे तो

पूरे हिन्दुस्तान पर उसका कब्जा हो सकता है। जब अब्दाली उसकी बात मान कर भारत आ पहुंचता है तो उसे रोकने के लिए अन्य राजाओं के साथ

सदाशिव युद्ध करने का फैसला करता है।

इस घटना को लेकर आशुतोष गोवारीकर ने ‘पानीपत’ नामक फिल्म बनाई है। फिल्म में दिखाया गया है कि उस समय क्या परिस्थितियां थीं। क्यों

अब्दाली को रोका जाना जरूरी था। क्यों सदाशिव के लिए लड़ना जरूरी था। किस तरह से इस युद्ध के हालात पैदा हुए। किस तरह से सदाशिव ने युद्ध की तैयारियां की। रणनीति बनाई।

चंद्रशेखर धवलीकर, रंजीत बहादुर, आदित्य रावल और आशुतोष गोवारीकर ने मिलकर यह कहानी लिखी है। नाटकीय प्रभाव पैदा करने के लिए कल्पना का
भी इस्तेमाल किया।

भारतीय इतिहास का यह एक ऐसा युद्ध है जिसके बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते हैं इसलिए इतिहास के पन्नों से निकाल कर इसे फिल्म का रूप दिया गया है।

फिल्म में पूरी कहानी पार्वती बाई (कृति सेनन) के जरिये बताई गई है जो कि सदाशिव राव भाऊ की पत्नी है। शुरुआत में सदाशिव की बहादुरी को लेकर सीन गढ़े गए हैं ताकि दर्शकों के मन में एक वीर की छवि अंकित हो।

इसके बाद अब्दाली से युद्ध के पहले की तैयारियों पर आधी से ज्यादा फिल्म खर्च की गई है। इस दौरान कई किरदार सामने आते हैं। कई घटनाएं घटित होती हैं। यह हिस्सा लंबा जरूर है, लेकिन रोचक भी है। इसके बाद क्लाइमैक्स में युद्ध दिखाया गया है। यह युद्ध ऐसा नहीं दिखाया गया है कि दर्शक वाह कहें, लेकिन बुरा भी नहीं है।
फिल्म की लंबाई थोड़ा परेशान करती है। आशुतोष गोवारीकर लंबी फिल्म बनाने के लिए जाने जाते हैं। यहां पर भी उन्होंने कुछ दृश्यों को बेवजह लंबा खींचा है जिससे कई दृश्यों का प्रभाव कम हो गया है।
फिल्म के मुख्य कलाकारों का अभिनय औसत है जिससे कई दृश्यों में वो बात नहीं बन पाई जो अच्छे कलाकारों के होने से बनती है। भव्यता जरूर नजर आती है, लेकिन सेट का नकलीपन भी जाहिर होता रहता है।

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